जज्बात जब उलझे कुछ लिख देती हूं दिल में कोई हूक उठे कलम उठती है। सुनने वाला न हो कागज़ सुन लेती है। जज़्बात जब उलझे कुछ लिख देती हूं। सपने…
Read moreबीच राह में तेरा बिछड़ना आज तक खलता रहा। मैं रुकी मुड़कर भी देखा पर तू सीधे चलता रहा। ज़ख्म का पता था फिर क्यू दिल गमजदा रहा। रात भर बिस्तर में लेटकर…
Read moreकुछ गुजर गया, कुछ ठहर गया हर लम्हा जाने किधर गया। वक्त जो बीता है तन्हाई में,जो तेरे साथ बिता वो निखर गया। तेरे इश्क का रंग फिजा में गुलाब पंखुड़ी सा…
Read moreसब अपने ही लिए फिक्रमंद हैं यहां अपना ज़ख्म किसे दिखाऊं। अपने गिरेबान में झांकने की जहमत नहीं उठाई जिसने। भरी महफ़िल में उसे दास्तां ए मुहब्बत सुनाऊ।…
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